अस्थि विसर्जन

ॐ अनादि निधनो देवः शंखचक्रगदाधरः ।
अक्षय्यः पुण्डरीकाक्षः प्रेतमोक्षप्रदोभव।

पूजा के बारे में

यस्य स्मरण-मात्रेण जन्म-संसार-बंधनात्
विमुच्यते नमस्-तस्मै विष्णवे प्रभविष्णवे।

अर्थात- जिनके स्मरण मात्र से, व्यक्ति जन्म और आवागमन के बंधन से मुक्त हो जाता है, मैं ब्रह्मांड के निर्माता, उस विष्णु को प्रणाम करता हूं।

अस्थि विसर्जन किसी मृत व्यक्ति के दाह संस्कार के बाद किया जाने वाला एक अंत्येष्ठि कर्म का भाग है , शास्त्रों के अनुसार अस्थियों को पवित्र नदियों में विसर्जन करना चाहिए,पुराणों में सबसे अधिक महत्व गंगा नदी का बताया गया है, अस्थियों का विसर्जन 10 दिन से पूर्व माँ गंगा जी मे कर देने का विधान है,जिससे मृत आत्मा को मोक्ष व शांति प्रदान हो सके।

पूजा कर्म विधान:

  • कर्म कर्ता का गंगा स्नान
  • अस्थियों का पूजन+संकल्प
  • पिंडदान+संकल्प
  • अस्थि विसर्जन
  • गंगा स्नान

गंगा स्नान हेतु वस्त्रों की अधिकता रखे.

पूजा स्थान: ब्रह्मकुंड हरिकी पौड़ी हरिद्वार

पूजा अवधि: 1 घण्टा के मध्य

पूजन सामग्री+दक्षिणा: 3000 मात्र (अतिरिक्त कोई मांग ,शुल्क नही)