चूड़ाकर्म मुंडन संस्कार
पूजा के बारे में
षोड़श संस्कारों में मुंडन संस्कार 8वा संस्कार है , मुंडन संस्कार करवाने से बालक का मानसिक व शारीरिक विकास अच्छा होता है, साथ ही बालक का बल तेज बुद्धि में विकास रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में काफी महत्वपूर्ण होता है। हिन्दू मान्यताओं व सनातन धर्म पद्धति के अनुसार किसी भी धार्मिक स्थान में चूड़ाकर्म मुंडन सँस्कार करवानी की शुभ मान्यता व परम्परा है, मुण्डन कर्म भारतीय परम्परा में बालक के जन्म के बालों को अशुद्ध माना जाता है
मुंडन पूरे विधि-विधान के साथ किया जाता है,
आमतौर पर इसे किसी धार्मिक तीर्थ स्थल पर करते हैं। धार्मिक तीर्थ स्थल पर मुंडन कराने की परंपरा इसलिए है,
ताकि बच्चे को धार्मिक स्थल के वातावरण का लाभ मिल सके, मुंडन संस्कार के दौरान बच्चे को मां अपनी गोद में
बिठाती है
इसके बाद, नाई उस्तरे की मदद से बच्चे का मुंडन करते हैं। हालांकि, कुछ परिवारों में शुरुआती बाल पंडित से
उतरवाए जाते हैं।
इसके बाद, गंगाजल से बच्चे का सिर धोया जाता है।
फिर, बच्चे के सिर पर हल्दी और चंदन का पेस्ट लगाया जाता है। अगर बच्चे के सिर पर किसी तरह का कट लग जाता
है, तो इस पेस्ट से जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है।
फिर बच्चे के बालों को किसी भगवान की मूर्ति के आगे या गंगा आदि पवित्र नदियों को समर्पित किया जाता है
कुछ परंपराओं में मुंडन के दौरान थोड़े-से बालों (शिखा)को छोड़ दिया जाता है। कहा जाता है कि यह चोटी
मस्तिष्क को सुरक्षा देती है।
चूड़ाकर्म संस्कार में बच्चे के बाल पहली बार उतारे जाते है
चूड़ाकर्म मुंडन संस्कार 1 वर्ष 3 वर्ष, 5 वर्ष,7वर्षबमे किया जाता है जन्म मास में चूड़ाकर्म संस्कार नही करवाना चाहिए।
पूजा कर्म विधान:
- आचमन+मंगल तिलक+रक्षासूत्र
- गणेश पूजन+गंगा पूजन (पञ्चाङ्ग पूजा)
- संकल्प केशाधिवास मुंडन
- केशदान
- गंगा स्नान पवित्रि करण
पूजा स्थान: हरिकी पौड़ी
पूजा अवधि: 45 मिनट से सवा घण्टे
पूजन सामग्री+दक्षिणा: 3100₹ (अतिरिक्त कोई मांग ,शुल्क नही)