पिंडदान
ॐ पितृव्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः, पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः, प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः,
अक्षन्पितरोऽमीमदन्त, पितरोऽतीतृपन्त पितरः, पितरः शुन्धध्वम्।॥
पूजा के बारे में
धार्मिक मान्यता है कि जो व्यक्ति अपने पूर्वजों के निमित्त पिंडदान करता है उसके 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है. साथ ही पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति करवाता है |
पिंड दान का शाब्दिक अर्थ पित्रो के निमित्त भोजन प्रदान करना, जो मनुष्य प्राणी पित्र पक्ष कृष्ण पक्ष आदि तिथि अमावस्या के दिनों में अपने पूर्वजों के लिए पिंड दान करता है,उन के पित्र बैकुंठ में वासी उनको शुभ आशीष प्रदान करते है।
पिंड दान विशेष अकाल मृत्यु अचानक या दुर्घटनावश व्यक्ति की मृत्यु होती है । गरुण पुराण में माना गया है कि अकाल मृत्यु एक ऐसी स्थिति है जब शरीर तो नष्ट हो जाता है, लेकिन आत्मा मृत्युलोक में ही भटकती रहती है। ऐसे में आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाना आवश्यक है हरिद्वार के कुशावर्त घाट को भगवान दत्तात्रेय की समाधि स्थली कहा जाता है। कहा जाता है कि इसी घाट पर पांडवों और श्रीराम ने अपने पितरों का पिंडदान किया था। इसीलिए यहां पर पिड़दान व स्नान करने से पितरों को शांति मिलती है और स्वर्ग तथा मोक्ष की प्राप्ति भी होती है,
ॐ पितृवंशे मृता ये च, मातृवंशे तथैव च,
गुरुश्वसुरबन्धूनां, ये चान्ये बान्धवाः स्मृताः,
ये मे कुले लुप्त पिण्डाः, पुत्रदारविवर्जिता:,
तेषां पिण्डों मया दत्तो, ह्यक्षय्यमुपतिष्ठतु.
भारत वर्ष में 3 स्थानों को पितृ कर्म के लिए माना जाता है बेहत पवित्र व कल्याणकारी
- ब्रह्मकपाल (बद्रीनाथ)
- हरिद्वार (स्वर्गद्वार)
- गया (विष्णुपद)
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