शुभ विवाह
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानु सारिणीम् |
तारिणींदुर्गसं सारसागरस्य कुलोद्भवाम् ॥
पूजा के बारे में
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानु सारिणीम्|
तारिणींदुर्गसं सारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥
अर्थात- है माँ मुझे सुंदर और मनचाही पत्नी की प्राप्ति हो मुझे एक सुंदर, सुशील और मेरी इच्क्षा का मान रखने वाली पत्नी प्रदान करें, जो इस विशाल और दुर्गम संसार के दुखों से मेरे घर को खुशहाल आनंदित रखे और जो एक अच्छे कुल की हो।
विवाह हिन्दू धर्म मे सोलह संस्कारो में 13 वां संस्कार है जिस को पाणिग्रहण संस्कार भी कहते है इस का सामान्य रूप से हिन्दू विवाह के नाम से जाना जाता है वि+वाह=इस का शाब्दिक अर्थ वहन,निर्वाहन,करना (उत्तरदायित्व)
समावर्तन संस्कार प्राचीन काल में गुरुकुल में शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात जब जातक की गुरुकुल से विदाई की जाती है तो आगामी जीवन के लिये उसे गुरु द्वारा उपदेश देकर विदाई दी जाती है। इसी को समावर्तन संस्कार कहते हैं। वर्तमान समय में दीक्षान्त समारोह, समावर्तन संस्कार जैसा ही है। अतः समावर्तन संस्कार वह संस्कार है जिसमें आचार्य गुरु जी जातकों को उपदेश देकर आगे के जीवन (गृहस्थाश्रम) के दायित्वों के बारे में बताया जाता है और उसे सफलतापूर्वक जीने के लिये क्या-क्या करना चाहिए, यह बताया जाता है। 'समावर्तन' का शाब्दिक अर्थ है, 'वापस लौटना'।
विवाह के अनन्तर ही ब्रह्मचर्याश्रम अवस्था की पूर्णता होती है और गृहस्थ आश्रम में प्रवेश होता है मनु जी ने बताया है की आयु का द्वितीय भाग अर्थात 25 से 50 वर्ष की अवस्था विवाह के अनन्तर गृहस्थ आश्रम में व्यतीत करना चाहिये
गृहस्थ आश्रम की बड़ी महिमा है इसे तीनों आश्रमों का मूल कहा गया है
'त्रयाणामाश्रमाणां तु गृहस्थो योनिरुच्यते'
'चत्वार आश्रमाः प्रोक्ताः सर्वे गार्हस्थ्यमूलका:"।
कहा गया है कि जिस प्रकार सभी जीव माता के आश्रय में जीवित रहते है वैसे ही सभी आश्रम गृहस्थ आश्रम के आश्रय से जीवित रहते है, सभी आश्रमों का मूल गृहस्थाश्रम है उसी प्रकार गृहस्थाश्रम का मूल है -- स्त्री (पत्नी)
"गृहवासो सुखार्थो हि
पत्नीमूलं च तत्सुखम्" (दक्षस्मृति ४)
पूजा कर्म विधान:
- पवित्रीकरण
- मङ्गल तिलक
- रक्षासूत्र विधान
- दीपक पूजन
- दिशा रक्षण
- गणेश पूजन
- संकल्प
- कलश वरुणादि(पञ्चाङ्ग पूजा)
- विष्टर
- मधुपर्क
- गोदान
- कन्या आगमन
- मोड़ी पूजन
- शाखोच्चार
- कन्यादान
- गठजोड़ा
- होम
- फेरे
- सातवचन
- वधू शिरसि सिन्दूरदानम
- मंगलसूत्र विद्यान
- ब्राहाम्ण आश्रीवाद।
पूजा स्थान: एन सी आर, हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून, रामनगर, उत्तरप्रदेश,नोयडा, हरियाणा,गुड़गांव, चंडीगढ़, उत्तरभारत।
पूजा अवधि: 2 से 3घण्टे
पूजन सामग्री+दक्षिणा: 110000 + 1500 मात्र (अतिरिक्त कोई मांग ,शुल्क नही)