तर्पण
आपो हिष्ठा मयोभुवस्था न ऊर्जे दधातन।
महे रणायचक्षसे॥
पूजा के बारे में
तर्पण एक सँस्कृत शब्द है जिस का प्रयोग श्राद्ध पित्र कर्म पूजा में प्रयोग होता है तर्पण शब्द- जो आनंदित करने या सन्तुष्ट करने को कहते है,साथ ही पित्रो की इच्छाओं को पूर्ण करना और उन पितर आत्माओं को खुश करना साथ ही पितरों को विधि पूर्वक तिल मिश्रित जल प्रदान करना जी तर्पण कहलाता है।
श्री पद्म पुराण-
श्लोक--??
अर्थात:- जो पुत्र बन्धु बांधव अपने पित्र के गणों के निमित्त तर्पण नही करते है उनके पित्र गण अपने परिवार के सदस्यों का रक्त शोषण करते है तथा ब्रह्मा आदि देव एवम पित्र गन तर्पण ना करने वाले मानव के शरीर का रक्त शोषण करते है -(घर मे किसी सदस्य का लम्बा रोग और मन अशांत कुविचार संकटमय जीवन रक्त सम्बंधित रोग) आदि समस्याएं उत्तपन हो जाती है इस लिये समय समय पर पित्रो के निमित्त तर्पण अवश्य करना चाहिये
पुराणों के अनुसार मृत्यु के देवता यमराज - श्राद्ध पक्ष और कृष्ण पक्ष और अमावस्या को जीव आत्मा (प्रेत अंश) को अपने बन्धन के मुक्त करते है ताकि वे जीवआत्मा अपनी पीढ़ी पुत्र बन्धु बांधव स्वजनों के घर जाकर तर्पण ग्रहण करे।
श्लोक--??
अर्थात:- श्रद्धा से किया गया कर्म श्राद्ध कहलाता है पित्रो के निमित्त जो श्रद्धा से किया कर्म आयु में सम्मान प्रतिष्ठा यश माभ ऐश्वर्य धन कृति वैभव व मनोवाँछित फल की प्राप्ति करवाता है, श्राद्ध कर्म तर्पण में -देव तर्पण ऋषि तर्पण यम तर्पण मनुष्य तर्पण पित्र तर्पण जो कोई करता है उस के पित्र उस जल को पाकर तृप्त हो जाते है तर्पण से मात्र पित्रगण की तृप्ति ही नही अपितु विश्वदेव इंद्र ब्रह्मा रुद्र अश्वनी सूर्य अग्नि वायु मनुष्यगण पशुगण भूतगण आदि ब्रह्मा जी की सृष्टि में जितने जीव प्राणी है वह सब तृप्त और सन्तुष्ट होते है
पूजा कर्म विधान:
- पवित्रीकरण
- मंगलतिलक
- रक्षासूत्र
- संकल्प
- तर्पण (देवतर्पण, ऋषितर्पण मनुष्यतर्पण, पित्रतर्पण)
- विसर्जन
पूजा स्थान: हरि की पौड़ी ,नारायणी शिला, हरिद्वार
पूजा अवधि: 1 घण्टे
पूजन सामग्री+दक्षिणा: 2100₹ (अतिरिक्त कोई मांग ,शुल्क नही)