त्रिपिंडी पूजा

तृप्तं त्रिपिण्डीभिर्देव गच्छ वैदिक धर्मज्ञ |
त्रिपिण्डीभिः पुरो जेतु यत्र संदर्शनं तथा ||

पूजा के बारे में

जो व्यक्ति त्रिपिण्डी का पूजन पिंड दान और देवता के साथ पित्रो का आवाहन करता है अपने पित्र आत्माओं को संतुष्ट करता है, उसके पित्र सदैव अपने कुल को आश्रीवाद स्वरूप में उत्तम सन्तति पुत्र पौत्र धन वैभव यश कृति आदि शुभ आशीष प्रदान करते है।

श्री पद्म पुराण-

पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः।
पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः॥

अर्थात:- पिता ही धर्म है, पिता ही स्वर्ग है और पिता ही सर्वश्रेष्ठ तपस्या है । पिता के प्रसन्न हो जाने पर सारे देवता प्रसन्न हो जाते हैं ।

पितरौ यस्य तृप्यन्ति सेवया च गुणेन च।
तस्य भागीरथीस्नानमहन्यहनि वर्तते ।।
सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता ।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत ।।

अर्थात:- सेवा और सदगुणों से पिता-माता प्रसन्न होते है, जो पुत्र माता पिता की सेवा व उनके निमित्त दान पुण्य करता है उस पुत्र को प्रतिदिन गंगा-स्नान का पुण्य मिलता है। माता सर्वतीर्थमयी हैं और पिता संपूर्ण देवताओं के स्वरूप हैं। इसलिए सभी प्रकार से माता-पिता का पूजन करना सर्वश्रेष्ठ है सभी प्रकार के यत्नो से माता पिता के लिये शुभ कर्म करना चाहिये।

त्रिपिंडी पूजा विशेष पितरों की आत्मा को मुक्ति प्रदान कराना , इस पूजन में ब्रह्मा विष्णु शिव की धातु की प्रतिमाओं के साथ साथ तीन कलश ब्रह्मा विष्णु महेश का पूजन प्राण प्रतिष्ठा का विधान है | यह त्रिपिंडी श्राद्ध उनको करवाना चाहिए जिनके पूर्वज असन्तुष्ट हो तथा उनको सद्गति और मोक्ष प्रदान ना हुआ हो ऐसे में इन विवंगत आत्माओं को प्रसन्न व शांत करने के लिये त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा करना और उनको मोक्ष प्रदान कराना होता है,
त्रिपिंडी श्राद्ध दिवंगत आत्माओं को शांति देने के लिए किया जाता है। त्रिपिंडी श्राद्ध में प्रमुख रूप से तीन पिण्डों की पूजा की जाती है, जिस में जौ के आटे का पिंड, चावल के आटे का पिंड, मास & तिल मिश्रित (उड़द) का पिंड जो पितृ, पितामह, और परपितामह के लिए होते हैं। इसके अलावा, इस अनुष्ठान में पितृ देवताओं को भोजन के रुप मे पिंड दान तथा पित्र के निमित्त तर्पण कर्म किया जाता है। श्राद्ध के दौरान पितृ आत्माओं के लिए प्रार्थनाएं की जाती हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलने की कामना की जाती है। यह अनुष्ठान पितृपक्ष या पित्र तिथि के दौरान किया जाता है और त्रिपिंडी श्राद्ध में आगे होम (हवन) आदि प्रेत शिला के दर्शन और अंतिम में नारायण शिला के दर्शन अभिषेक तदोपरांत गंगा जी मे पिंड विसर्जन स्न्नान आदि का शास्त्रों में वर्णन है

किस को करवानी चाहिए-

  • जिस घर मे दुर्धर रोग (गम्भीर रोग)।
  • अशाध्य रोग।
  • पिशाच बाधा।
  • तांत्रिक बाधा
  • बच्चो का मनमुटाव।
  • सन्तान का मनमुताबिक कार्य करना।
  • व्यसन और गलतआचरण करना।
  • माता पिता को परेशान और कष्ट देना।

पूजा कर्म विधि-

  • आचमन,मंगलतिलक,रक्षासूत्र
  • दिपक पूजन
  • गणेश पूजन(पञ्चाङ्ग पूजा)
  • तीन कलशों का आवाहन,प्रतिष्ठा,पूजन
  • तर्पण
  • प्रेतशिला दर्शन
  • होम
  • पिंडदान,पिंडपूजन
  • नारायणी शिला दर्शन अभिषेक
  • पिंडविसर्जन,गंगास्नान

पूजा स्थान: नारायण शिला&प्रेतशिला (हरिद्वार)

पूजन समय अवधि: 2 से 3 घण्टे

दक्षिणा+पूजन सामग्री: 9100₹